Saturday 30 August, 2008

तुझे तो नरक में भी जगह नहीं मिलेगी…….

………पारो की आँखों में आंसू थे,वह कुछ नहीं बोलती और हरिया की चारपाई से उठ कर अपनी चारपाई पर जाकर लेट जाती है | कुछ देर में वह सो जाती है |

हरिया भी अपनी चारपाई पर लेट जाता है |लेकिन उसकी आँखों में नींद न थी |वह सोने की कोशिश करता है लेकिन उसे नींद नहीं आती ,पारो ने ऐसी बात कही थी जिसने उसके मन में तूफान मचा दिया था |वह कभी इस करवट लेटता है तो कभी इस करवट | वह उठ कर बैठ जाता है |बण्डल से बीडी निकलता है और उसे सुलगा लेता है |वह एक अजीब कसम कस में फस गया था |उसके मन में अनेकों विचार आ रहे थे | वह सोच रहा था की जब कल को उसकी और पारो दोनों की उमर हो जायेगी तो कोंन उनका सहारा बनेगा | काफी देर सोचने के बाद वह फिर लेट जाता हे शायद वह किसी बड़े निर्णय पर पहुँच गया था | इसके बाद उसे नींद आ जाती है |

सुबह जब हरिया की आँखें खुली तो वह देखता हे कि सूरज का प्रकाश किवाड़ों कि झीरी से होकर अंडर आ रहा था |वह पारो कि चारपाई कि तरफ़ देखता है | पारो उठ कर जा चुकी थी , सूरज काफी ऊपर चढ़ चुका था | हरिया उठता है और कपड़े पहन कर आपनी दिनचर्या में व्यस्त हो जाता है |

लगभग तीन महीने गुजर जाते है दोनों बच्चे काफी स्वस्थ थे |चढ्ढा साहब ने साडी रिश्तेदारी में निमंत्रण भेज दिया था | उन्होंने शहर के सभी नमी ग्रामी हस्ति यो को पार्टी में निमंत्रित किया था और आज वह दिन आ गया था |

सुबह से ही घर में चहल - पहल थी | चढ्ढा साहब ने अनेकों प्रकार का खाना बनवाया था लेकिन मांसाहारी कुछ जायदा था | अब रूबिया की हालत भी अच्छी हो गई थी | वह टहलते हुए हर एक वास्तु को इस प्रकार चेक कर रही थी मनो कोई इजीनियर किसी फैक्टरी का जायजा ले रहा हो ,और भला चेक भी कियो न करे आज उनकी सहेली या और मित्र पार्टी में जो आने वाले थे |

गेट के बहार एक गाड़ी आकर रुकती है | गेट-कीपर गेट खोलता है | गाड़ी अंदर लान में रुकती है | उसके अंदर से एक पुरुष और एक औरत उतरती हे | औरत के हाथों में एक नवजात बच्ची थी जिसका जन्म पाँच महीने पहले हुवा था , यह औरत चढ्ढा साहब कि बहन मोहिनी थी | उनके साथ उनके पति भी थे |मोहिनी इंडिया एयर लाइंस में एयर होस्टिस थी | उनके पति बीमा कंपनी में मैनेजर थे | पैसा कमाने में ये लोग भी किसी से पीछे नहीं थे | घर में एक बूढी सास थी जो घर कि और छोटी बच्ची दोनों कि देखभाल करती थी |

शाम हो चुकी थी | चढ्ढा साहब का बँगला बिजली की रोशनी से जगमगा रहा था | दोस्त और समंधी पार्टी में आने शुरू हो गए थे | इस समय चढ्ढा साहब और उनकी बीबी रूबिया दौड़- दौड़ कर रिसीव कर रहे थे |दोनों बच्चों को पारो संभाले हुए थे | टंडन साहब भी अपन परिवार के साथ आ रहे थे | वो अपनों गोद में अपनी बेटी एश्वेर्या को उठाए हुए थे और दूसरे हाथ में बच्चों के लिए कुछ उपहार लिए हुए थे ,इस समय वों अपनी भरी पत्नी के साथ ऐसे लग रहे थे मनो कोई महावत किसी हथनी के साथ चल रहा हो | एश्वेर्या को वे लोग पारो के पास छोड़ देते हे | हरिया भी मेहमानों की खातिर में व्यस्त हो जाता है |

पार्टी इस समय खत्म होने वाली थी और सभी लोग खाना खा रहे थे | सभी खाना खाकर बच्चो को आशीर्वाद देते है और अपने घर लोटने लगते है |लगभग रात के ग्यारह बजने तक सभी लोग लोट जाते है |

चढ्डा साहब और रूबिया दोनों खुश थे लेकिन इस समय वो इतनी शराब पी चुके थे की उनके कदम लड़ खड़ा रहे थे |हरिया और पारो उन्हें पकड़ कर उनके अमर में छोड़ आते है | हरिया बच्चो को भी उनके पास सुला आता है लेकिन दरवाजा बंद नही करता |

पारो कमरे में आ चुकी थी | वह सुबह से कम करते थक गई थी इसलिए वों जल्दी सो जाती है | हरिया कमरे में आता है और सामान बंधने लगता है | वह अपने सारे सामान को बाँध लेता है और चारपाई पर बैठ कर बण्डल से बीड़ी निकल कर सुलगा लेता है |फिर वह पारो को जगाता है ,पारो जगती है |

पारो -”क्यो इतनी रात क्यो जगा दिया “

हरिया कापती आवाज से -”जाओ एक बच्चे क्यों ले आओ गाँव चलते है “|

पुत्र मोह ने हरिया को अंधा कर दिया था | पारो ने सुना तो खुश हो जाती है ,उसकी नींद भाग जाती है | वह चारपाई से उठती है और धीरे धीरे सीढियो से चढ़कर कमरे के अन्दर झाकती है | इस समय रूबिया चढ्ढा साहब के सीने पर सिर रखकर गहरी नींद में सो रही थी , चढ्ढा साहब भी गहरी नींद में सोये हुवे थे |

पारो कमरे में प्रवेश करती है ,उसका दिल जोर-जोर से धड़क रहा था वह कापते हाथों से छोटे बच्चे को उठा लेती है और नीचे आ जाती है | हरिया गठरी को उठा लेता हे और पारो को एक चद्दर ओढ़ने को देता हे | दोनों चुपके से बंगले के गेट से बहार निकलते है | सारा शहर इस समय नींद में सोया हुवाथा |

हरिया गठरी लेकर आगे चल रहा था और पारो उसके पीछे चल रही थी |रात के लगभग बारह बज चुके थे | वे स्टेशन पहुँचते है और गाँव के लिए गाड़ी में सवार हो जाते है |

हरिया गठरी को रखकर बैठ जाता है | पारो भी उसकी बगल में बैठ जाती है | हरिया गाड़ी से बहार देख रहा था और किसी गहरी सोच में डूबा हुवा था | वह उदास था ,लेकिन पारो बहुत खुश थी वह बच्चे को इस प्रकार चूम रही थ मनो कोई गाय अपने नवजात शिशु को चूम रही हो |

रेलगाड़ी पटरी पर दौड़ रही थी लेकिन हरिया अपने ही ख़्यालों में खोया हुवा था | उसे पन्द्रह साल पहले के वो दिन याद आ रहे थे जब गाँव में अकाल पड़ा था और वह पारो को लेकर शहर आया था | उसे याद आ रही थी वो पूस को रात जब वह अपनी नवविवाहिता पारो के साथ सड़क के किनारे पड़ा ठिठुर रहा था और चढ्ढा साहब के पिता उन्हें अपने घर ले गए थे | ये तुने अच्छा नही किया हरिया ,यह तो एक विश्वास घात किया किया हे तुने ,तुझे तो नरक में भी जगह नहीं मिलेगी ,भगवान तुझे कभी माफ नहीं करेगा-वह अपने आप को धिकारता है , उसकी आँखों में आंसू थे ,वह बहुत उदास हो गया था |
<<पीछे (विजय-राज चौहान के प्रकाशित उपन्यास "भारत /INDIA" से)

जारी है .....................

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