Sunday 24 August, 2008

“भगवान के घर देर है अंधेर नहीं ” |

…….थोडी देर के बाद श्रीमती टंडन रूबिया के कमरे में प्रवेश करती है |उनके साथ उनकी तीन साल की बेटी एश्वेर्य टंडन भी थी | आधुनिक जमाने का टंडन साहिबा पर कुछ जायदा ही असर था |उनके पति टंडन साहब की कागज व गत्ता बनाने की फैक्टरी थी, बिजनेस के फिल्ड में उनकी अच्छी पकड़ थी और वे भी चढ्ढा साहब की तरह से शहर के नमी रईसोमें गिने जाते थे | मिसिज टंडन का अधिकांश समय घर से बाहर ही गुजरता था | शहर में उन्हीं की तरह की कुछ रईस जादिया उनकी सहेली या थी जिनके पास जाकर वह सुबह से शाम तक ताश या जुए का खेल खेलती थी | वह टंडन साहब की दौलत को पानी की तरह से बहा रही थी |टंडन साहब ये जानते थे लेकिन उन्हें कुछ भी कहने की उनकी हिम्मत नहीं होती थी | टंडन साहब का बंगला भी चढ्ढा साहब के बंगले के पास था इसलिए दोनों एक दूसरे के दुःख-सुख में शरीक होते थे, और इसलिए टंडन साहिबा आज रूबिया की हालत का पता लेने आई थी |

टंडन साहिबा - “रूबिया अब तुम्हारी तबीयत कैसी है ” ?

रूबिया - ” अच्छी हूँ “

टंडन साहिबा -”सुना है तुमने क्रष्ण और बलराम दोनों को एक साथ भी बुला लिया है ” |

रूबिया (हँसते हुए )- “बुलाया कहा भगवान की जैसी मर्जी होती है वैसा ही होता है |वरना आठ साल हो गए थे ,घर में किसी बच्चे की किल्ल्कारी सुनने को कान तरस गए थे और अब आए भी तो दो एक साथ , किसी ने टीक ही कहा है ‘भगवान के घर देर है अंधेर नहीं ” |

टंडन साहिबा -”ठीक कहती हो , कहा है तुम्हारे लाल “?

रूबिया - ” वहां पलने में दोनों सो रहे है”

मिसिज टंडन पालने के पास जाती है और दोनों बच्चों को निहार ने लगती है |

-”सच रूबिया दोनों के नैन-नक्श एक जैसे है, इनमें बड़ा कोन सा है”

रूबिया -”वही जिसके हाथ में कला धागा बंधा है “

पारो कोफ़ि ले आती है | दोनों सहेलिया कोफ़ि की चुस्किया लेते हुए बातें कर रही थी और तीन साल की छोटी बच्ची एश्वेर्या पलने के पास खड़ी सोते हुए बच्चों को देख रही थी |

मिसिज टंडन - ” अच्छा तो रूबिया अब मै चलती हूँ शाम हो गई है “|

वह एश्वेर्या को आवाज लगाती है एश्वेर्या दोड़कर आती है और टंडन साहिबा की उंगली पकड़ कर साथ चल देती है |

पारो आती है और पलने मे बच्चों को देखकर बोली -”मेमसाहब बच्चे जाग गए है , आप उन्हें दूध पिला दीजिये तब तक मै खाना तैयार करती हूँ “

रूबिया- ” ठीक है तुम इन्हे मेरे पास ले आओ “

पारो बच्चो को उठा कर रूबिया के पास ले जाती है |रूबिया दोनों बच्चो को बारी-बारी से दूध पिलाती है |परो किचन में चली जाती है | हरिया जो बाजार सब्जी आदि सामान लेने गया था सामान लाकर किचन में रख देता है और बचे पैसे रूबिया को दे देता है |

रात के लगभग साढ़े दस बजे जा रहे थे चढ्ढा साहब की गाड़ी आकर रूकती है | चढ्ढा साहब गाड़ी से उतरते है और ऊपर रूबिया के कमरे में चले जाते है और हरिया को आवाज लगते है |

हरिया -”जी साहब “(हरिया किचन से दोड़ता हुआ आता है )

चढ्ढा साहब -”नीचे गाड़ी में कुछ दमन रखा है उसे उठा कर ऊपर ले आओ “

हरिया -”जी अच्छा “

हरिया नीचे जाता है और गाड़ी में रखे एक बड़े थैले की उठा कर ओपर कमरे में ले आता है |शायद थैले में बच्चो के कुछ गरम कपड़े और खिलौने थे |वह थैले को कमरे में रख आता है |

पारो आती है | “साहब खाना तैयार है “

चढ्ढा साहब -”ठीक है मेज पर लगा दो तब तक मै हाथ मुँह धो लेता हूँ “

पारो -”ठीक हे साहब “

पारो किचन में जाकर खाना डालने लगती है | हरिया खाने को मेज़ पर परोसा देता है | चढ्ढा साहब मेज़ पर बैठे खाना खा रहे थे तो रूबिया बेड़ पर बेटी खा रही थी | दोनों खाना खा लेते है तो हरिया बर्तन उठा ले जाता है |

पारो (हरिया से ) -”आप भी खाना खा लीजिए “

हरिया भी बैठ जाता है और खाना खाने लगता है |खाना खाखर हरिया नीचे अपने कमरे में चला जाता है | वह चारपाई पर कपड़े बिछा कर बैठ जाता है |वह जेब से बीड़ी का ब्लड निकलता है और उसे माचिस से जलाकर पीने लगता है |बीड़ी पीकर वह लेट जाता है तब तक पारो भी बर्तन साफ करके उसके पास कमरे में आ जाती है |वह अपनी चारपाई बिछा देती है और बैठ जाती है |

पारो -” सो गए हो किया ?”

हरिया -”नहीं अभी तो नहीं “

पारो हरिया के सिरहाना आकर बैठ जाती है और हाथो की उंगलियो से हरिया के बाल सहलाने लगती है | घर में खुशी का माहोल होने के बाद भी पारो उदास थी |

पारो-”किओजी , किया हमारे भाग्य में ओलाद का सुख नही हे किया “

हरिया -”ऐसा कियो सोचती हो पारो ,मेरा जी कहता हे एक दिन मम साहब की तरह से तुम्हारी भी गोद आवश्य भर जायेगी “|

पारो -”जिस पेड़ पर भरी बाहर में फल न आया हो तो बुढापे में किया फल देगा “|

पारो को आँखे भर आई थी उसका गला रूंध गया था |हरिया चुपचाप पड़ा रहता है | उसका मन भी दुखी था | कुछ देर बाद पारो बोलती है |

-”किओजी एक बात कहू तो बूरा तो नही मानोगे “

हरिया -” कहो तो सही बूरा कियो मानूंगा “

पारो - “कियो न हम साहब के एक बच्चे को लेकर आपने गाँव जा रहे ?”

हरिया के शरीर में सर से पांव तक एक बिजली सी दोड़ जाती हे | उसे लगा जैसे किसी ने उसके घाव में सुई चुभो दी हो |

वह बैठ जाता है पारो की तरफ़ मुँह करते हुए बोला -” ऐसा कहने से पहले तुम्हारी जीब कियो न कट गई ,तुम्हारी मति मरी गई हे किया ,जानती हो तुम किया कह रही हो ,जिस घर का पंद्रह साल से नामक खा रहे है उसी की थाली में छेद करने को कह रही हो तुम “

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