Sunday, 17 August 2008

भादों का महीना था, पूरे शहर में कृष्णा जन्माष्टमी होने की वजह से धूमधाम थी |

भादों का महीना था, पूरे शहर में कृष्णा जन्माष्टमी होने की वजह से धूमधाम थी | हलवइयो की दुकानें घेवर, पेड़ों व मिठ्हियो से भरी पड़ी थी , लोग इन्हें खरीद रहे थे और एक दूसरे को त्यौहार ही बधाई दे रहे थे |
लेकिन धनपत चढ्ढा के घर में कोई उमंग न थी | इस समय चढ्ढा साहब एक कमरे में सिगरेट के दम लगते टहल रहे थे , वे कुछ परेशां नजर आ रहे थे लेकिन परेशानी के साथ एक आत्मिक खुशी भी को रही थी ,किओकी शादी के आठ साल बाद आज उनके घर में एक नया मेहमान आने जा रहा था |
वैसे तो चढ्ढा साहब की उमर चालीस -पैंतालीस की थी किंतु ओलाद न होने की वजह से कुछ ज्यादा ही उमर के लगने लगे थे | इसके अलावा उनका कंप्यूटर सोफ्टवेर का काफी बड़ा कारोबार था जिसे वे बखूबी चला रहे थे | उनकी पत्नी रूबिया का भी एक बूटी पार्लर था जिसे वह भी सुबह से देर रत तक चलती थी | दोनों की अच्छी आमदनी थी, महीने में लाख -दो लाख की आमदनी तो हो ही जाती थी | इसके अलावा बँगला गाड़ी व अन्य सभी ऐश आराम के सभी सामान घर में सुसज्जित थे घर में दो नौकर हरिया और उसकी पत्नी पारो भी थे जो पिछले पंद्रह साल से इसी घर में रह रहे थे |
अचानक पारो दौड़ती हुई आती है |”साहब,मेम साहब की तबीयत ज्यादा ही ख़राब हो रही है” | चढ्ढा साहब तेजी के साथ रूबिया के कमरे में जाते है | रूबिया प्रसव पीड़ा के कारण बहुत परेशान थी | चढ्ढा साहब ने दोड़कर फोन का रिसीवर उठाया और लेडिज डाक्टर नीतू सिंह का नम्बर डायल कर दिया | फोन उठाते ही चढ्ढा साहब बोले -”हेलो डाक्टर साहब में धनपत चढ्ढा बोल रहा हूँ ” | उधर से एक ओरत की आवाज आती है -”हेलो चढ्ढा साहब कैसे हो “|
“जी मै ठीक हूँ लेकिन मेरी पत्नी की तबीयत काफी ख़राब है “| “क्या हुआ उन्हें ” | “जी डिलेवरी केस हे आप जल्दी से एक एम्बुलेंस भेज दीजिए “, “अच्छा अभी भेजती हूँ “|
चढ्ढा साहब ने फोन रख दिया और रूबिया के पास चले गए | पारो रूबिया के सिर को सहला रही थी और रह रहकर उस्केदिल को सांत्वना दे रही थी |
थोडी देर के बाद लोन में एक गाड़ी आकर रूकती है | दो आदमी आते हे और रूबिया को उठाकर कार के अन्दर लिटा देते है |
पारो और चढ्ढा साहब भी गाड़ी में बैठ जाते है | घर पर हरिया रह जाता है | थोडी देर बाद गाड़ी अस्पताल पहुच जाती है | दोनों व्यक्ति उतरते हे और रूबिया को उठा कर आपरेशन कक्ष में ले जाते है |
डाक्टर नीतू सिंह आती हे उनके साथ दो नर्स ओर थी, वे ओपरेशन कक्ष में चली जाती है |पारो ओर चढ्ढा साहब बहार बैंच पर बैठ जाते हे | वे आपरेशन कक्ष के बहार लगे लाल बल्ब को बार-बार देख रहे थे |रह रहकर उनकी निगाह दीवार पर लगी घड़ी पर भी जा रही थी जी इस समय रात के ग्यारह बजा रही थी |
आख़िर एक घंटे बाद इंतजार की घड़िया समाप्त होती है और बारह बज कर कुछ ही सेकंड हुए थे कि ओपरेशन कक्ष के बहार लगा लाल बल्ब बूझ जाता है |
अन्दर से डाक्टर नीतू सिंह आती है , उनके चहरे पर मुस्कुराहट थी -”बधाई हो चढ्ढा साहब, आपके घर क्रष्ण और बलराम दोनों ने जन्म लिया है ” |
चढ्ढा साहब चोककर - ” क्या मतलब “|
“मतलब यह हे कि आप दो बेटो के बाप बन गए हो ” |
चढ्ढा साहब खुशी के मरे उछल पड़ते है | पारो का मन भी खुशी के मरे प्रफुलित हो उठता हे |
-”लेकिन चढ्ढा साहब ” |
-”लेकिन क्या डॉक्टर ” |
-”मुझे बड़े दुःख के साथ कहना पड़ रहा है कि आप कि पत्नी आगे माँ नही बन सकती “-चढ्डा साहब को लगा कि मनो किसी ने उनके सिर पर तोड़ा मर दिया हो |
-”दो बच्चे होने कि वजह से उनकी फोलिकल टूब ख़राब हो गई हे इसलिए वों आगे माँ नही बन सकती “|
इतना कह कर डॉक्टर चली जाती है |
-”डाक्टर “- पीछे से चढ्ढा साहब ने पुकारा |
-”क्या मै अभी रूबिया को देख सकता हूँ “|
डाक्टर -” नही अभी तो वों आराम कर रही है , और उन्हें ये बात भी न बताना,ओर बच्चो के पास पारो को भेज दो “|
-”जी अच्छा “|
चढ्ढा साहब इस समय काफी परेशान थे लेकिन साथ ही उन्हें एक आत्मिक खुशी भी हो रही थी |वे सोच रहे थे कि आख़िर दो बच्चों से ज्यादा बच्चे पैदा करके क्या करना है |
पाँचवें दिन रूबिया कि अस्पताल से छुट्टी हो जय है | घर पहुँचते ही एक बच्चे को हरिया उठा लेता है तो दुसरे को पारो |वे बच्चों को इस तरह पियर कर रहे थे कि मनो वों उनकी अपनी औलाद हो |
पूरे घर में खुशी का माहोल था |आठ साल के बाद आज ही तो वो दिन आया था कि घर में किसी बच्चे के रोने कि आवाज सुने दी हो | रूबिया बेड़ पर लेती हुई थी |वह बच्चों को देखकर इतनी खुश थी कि मनो साडी दुनिया कि खुशी उनके घर में आ गई हो ,वह कभी एक बच्चे का चुम्बन लेती तो कभी दुसरे का |
पारो और हरिया भी पास खड़े थे लेकिन पारो कुछ उदास नजर आ रही थी | हरिया उसकी उदासी का कारण जनता था |वो जनता था कि पारो उस बंजर पेड़ कि तरह से हे जिसकी डाल पर पिछले पन्द्र साल से कोई फल नहीं आया था | अचानक ही चढ्ढा साहब कमरे में प्रवेश करते है |
-”हरिया”
-”जी साहब “
-”सभी लोगो को फोन कर दो कि हम परसों बच्चों के जन्म कि खुशी में पार्टी दे रहे है “|
हरिया (कुछ रुककर ) -”लेकिन साहब एक बात कहूं अगर आप मानो तो “|
-”हाँ कियो नहीं कहो तो सही “|
हरिया -”साहब मेरी मनो तो पहले मेमसाहब को आच्ची हो जाने दो”|
चढ्ढा साहब -”कियो रूबिया तुम्हारा क्या कहना है “|
-”जी हरिया ठीक ही तो कह रहा है “|
चढ्ढा साहब -”ठीक है जैसी तुम्हारी इच्छा “|
इतना कह कर चढ्ढा साहब दफ्तर चले जाते है |

- उपन्यास (भारत /India) से-(लेखक-विजय-राज चौहान)आगे >>

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