Sunday 10 August, 2008

१५ अगस्त पर विशेषः(हिन्दी के विरोध का कोई भी आन्दोलन राष्ट्र कि प्रगति में बाधक है |)


मित्रों आपके सामने अपने प्रकाशित उपन्यास "भारत/INDIA" से पेज १५६-१५८ तक के कुछ अंश जो मुख्य पात्र भारत द्वारा गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर स्कूल समारोह में कहे जाते है प्रस्तुत कर रहा हूँ | अपनी प्रतिक्रियाँ दे ...........|
भारत बोला -
"आदरणीय गुरु जनों ,उपस्थित अतिथि यो और मित्रों , मेरे नाम से तो आप भली भांति परिचित है ही ये मेरा सौभाग्य है की आज मुझे फिर एक बार आप लोगों के सामने आपने विचार प्रकट करने का मौका मिल गया ,और परमेश्वर की किरपा से आज का दिन वैसे भी इतना पवित्र है की आज भारत का हर नागरिक खुशी मन रहा है और आभार स्वरूप श्रधान्जली दे रहा है उन महापुरुषों और शहीदों को जिन्होंने अपने प्राणों की बाजी लगाकर हमें ये आजादी की खुली हवा प्रदान की | लेकिन में पूछना चाहता हूँ आज के समाज के इन सभी लोगों से जो आजादी के जश्न में पागल हुए जा रहे है ,कि अरे ओ लोगों किया वास्तव में हमने उस आजादी को पा लिया है जिसका सपना हमारे उन महापुरुषों और शहीदों ने देखा था ,क्या हमने उस भारत का निर्माण कर लिया है जिस प्रकार के भारत का सपना उन लोगों ने देखा था ? यदि हम थोड़े से आत्मिक और गंभीर होकर सोचे तो हम पाएंगे कि नहीं ,हमने उस प्रकार के भारत का निर्माण नहीं किया जिस प्रकार के भारत का सपना हमारे उन शहीदों ने देखा था | क्योंकि उन लोगों ने सपना देखा था एक ऐसे भारत का जिसमे भूख न हो , जिसमे गरीबी न हो | जिसमे अन्याय न हो ,जिसमे अत्याचार न हो |
लेकिन आज ये सारे सामाजिक दोष इस देश के सिर चढ़कर बोल रहे है हमने इन्हें समाप्त नहीं किया ......................|
खैर छोडिये इस विषय को में नहीं बताना चाहता कि इन सब सामाजिक दोष के न दूर होने में किस का दोष है और किस का नहीं , क्योंकि में और आप दोनों अच्छी तरह जानते हे कि दोष क्यों दूर नहीं हो पाये और कौन इसके लिए अपराधी है |
आज में जिस विषय पर में अपने विचार प्रकट करने जा रहा हूँ वों इस देश कि आत्मा का है जो एक बहुत ही महत्वपूर्ण और दुर्भाग्य का विषय है |
इस देश के संविधान ने आज ही के दिन इस देश कि आत्मा अर्थात "हिन्दी" से एक वादा किया था और वह वादा था कि "संविधान के अनुसार २६ जनवरी १९६५ से भारतीय संघ कि राजभाषा देव नागरी लिपि में हिन्दी हो गई है और सरकारी कामकाज के लिए हिन्दी अंतराष्टीय अंकों का प्रयोग होगा |"
लेकिन ये वादा आज तक पूरा नहीं हो पाया और हिन्दी अपने इस अधिकार के लिए आज तक संविधान के सामने अपने हाथ फैला ये आंसू बहा रही है | आख़िर इसका किया कारण है किया वास्तव में हिन्दी इतनी बुरी चीज है कि हम उसे अपनाना नहीं चाहते ?
नहीं वह इतनी बुरी चीज नहीं है | वह इस दुनिया कि सबसे अधिक बोली जाने वाली तीसरे नम्बर कि भाषा है और इसी कि महत्ता को भारत के अनेक महापुरुषों ने भी स्वीकार किया है इसकी इस महत्ता को देखकर ही एक ऐसे व्यक्ति "अमीर खुसरो" जिसकी मूल भाषा अरबी ,फारसी और उर्दू थी उसने कहा था -
"मैं हिन्दुस्तान कि तूती हूँ ,यदि तुम वास्तव में मुझे जानना चाहते हो हिन्दवी(हिन्दी) में पूछो में तुम्हें अनुपम बातें बता सकता हूँ "
इसके अलावा हिन्दी का महत्व समझते हुए ही उर्दू के एक शायर मुहम्मद इकबाल ने बड़े गर्व से कहा था कि -
"हिन्दी है हम वतन है हिन्दोंस्ता हमारा |"
हिन्दी हमारे भारतीय होने कि पहचान है और इसी के द्वारा ही भारत के हर नागरिक को भारतीयता कि माला में पिरोया जा सकता है | और हिन्दी के इसी महत्व को जान कर भारत के एक युगपुरूष महर्षि दया-नंद सरस्वती जिनकी मूल भाषा गुजराती थी, ने कहा था -
"हिन्दी के द्वारा ही भारत को एक सूत्र में पिरोया जा सकता है "और उसी महर्षि की आवाज में आवाज मिली थी उन्हीं की मूल भाषा रखने वाले एक लौह पुरुष सरदार वल्बभाई पटेल ने और आजादी के बाद कहा था -
"हिन्दी अब सारे राष्ट्र की भाषा बन गई है इसके अध्ययन एवं इसे सर्वोतम बनाने में हमें गर्व होना चाहिए |"
भारत ने इतना कहा और फिर अक्षणिक सुस्ताया और फिर बोला -
"मैं आप लोगों को बताना चाहता हूँ कि,क्योंकि भारत की मिट्टी के कण-कण में परमेश्वर निवास करता है इसलिए हिन्दी परमेश्वर की भाषा है और इसी बात को स्वीकार किया था उन गुरुदेव रविन्द्रनाथ ठाकुर ने जिनकी मूल भाषा बांग्ला थी | उन्होंने कहा था कि -
"यदि हम प्रत्येक भारतीय नैसर्गिक अधिकारों के सिद्धांत को स्वीकार करते है तो हमें राष्ट्र भाषा के रूप में उस भाषा को स्वीकार करना चाहिए जो देश में सबसे बड़े भूभाग में बोली जाती है और वों भाषा हिन्दी है |"
और गुरुदेव कि इसी वाणी को स्वीकार था उन्हीं कि मूल भाषा रखने वाले नेता जी सुभाष चंद्र बोस ने और कहा था कि -
"हिन्दी के विरोध का कोई भी आन्दोलन राष्ट्र कि प्रगति में बाधक है |"
मैं पूछता हूँ कि जब भारत के ऐसे - ऐसे महापुरुषों ने हिन्दी के महत्त्व को समझा और स्वीकार किया तो आज का समाज क्यों हिन्दी को स्वीकार नहीं कर रहा ,आख़िर हिन्दी में कौन सी ऐसी बुराई है कि हम हिन्दी को बोलना ही पसंद ही नहीं करते और अँग्रेज़ी बोलने में गर्व महसूस करते है | क्या हिन्दी वास्तव में इतनी बुरी चीज है कि हम उसे अपनाने में अपने आप को हीन समझते है | आज मैंने देखा है कि हिन्दी में बोलने पर स्कूलों में बच्चों को दण्डित किया जाता है , उन्हें कहा जाता है कि आपस में अँग्रेज़ी में बातें करो या फिर जुर्माना भरो |
आज हम एड़ी से लेकर चोटी तक अँग्रेज़ी को अपना रहे है | आज हम अपने आचार और विचार में महात्मा गाँधी द्वारा कही गई राक्षसी पश्चिम को पाना रहे है और देवता पूरब को घर से धक्के देकर बहार निकाल रहे है | लोगों आखिर हम ऐसा क्यों कर रहे है | क्या आज हम लार्ड मैकाले के उस उद्देश्य को पूरा नहीं कर रहे ,जिसमे उसने कहा था कि -"अँग्रेज़ी शिक्षा एक ऐसे वर्ग को तैयार करेगी जिसका रुधिर और रंग तो भारतीय होगा , किन्तु उनकी जो अपनी रुचि , सम्मति ,आचार ,व्यवहार और बुद्धि वों पूर्णतया अँग्रेज़ी होगी |"
आख़िर मुझे बताओ तो सही कि लार्ड मैकाले के जिस उद्देश्य का हमारे महापुरुषों और शहीदों ने विरोध किया उस उद्देश्य को हम आज क्यों पूरा कर रहे है ,क्या हम वास्तव में इन उद्देश्यों पर चलकर भारत के उन शहीदों को सच्ची श्रधान्जली दे रहे है ?
नहीं हम सच्ची श्रधान्जली नहीं दे रहे क्यों कि किसी महान व्यक्ति कि पुण्य आत्मा को सच्ची श्रधान्जली वाही है कि उस पुण्य आत्मा के विचारों हम अपनाए और उसके द्वारा अधूरे छोड़ कार्यों को पूरा करे | लोगों पत्थरों पर फूल चढ़ने से श्रधान्जली नही दी जाती बल्कि श्रधान्जली पाने वाले कि आत्माओ के विचारों को अपना कर उस आत्मा को श्रधान्जली दी जाती है |"
धन्यवाद !
जय - हिंद
विजयराज चौहान (गजब)
पूरा उपन्यास यहाँ देखे |

4 comments:

Ajay Tomar (अजय तोमर) said...

क्या करें श्रीमान जी हिंदी में बोलना और लिखना तो हम भारतवासी अपनी कमजोरी समझते हैं और अँग्रजी में अपनी बडाई. अब देखो मेरा पडोसी दुकानदार हमारे बाजार में सबसे अँग्रजी में बोलता है और हम सब लोग हिंदी में उसे जबाब देते हैं लेकिन फिर भी उसे शर्म नहीं आती. लानत है ऐसे लोगों पर जो अपनी राष्ट्र भाषा हिंदी में बोलना व लिखना अपनी बेइज्जती/कमजोरी/तौहीन समझते हैं.

Birds Watching Group said...

angreji me hindi likh rahaa hun savdhaani se padhen

bhashaa apni jagah hai magar hum bhashaa ke sath sanskruti audh lete hai jo aur bhi gajab dhati hai.
sabse pahle apnaa , apnaa ghar fir matru bhashaa uske baad rashtra bhasha upraant apni samaajik sanskruti taduparaant rashtra dharm aur fir anya bhasha kaa samman karen to koi harj nahi hona chahiye

http://rajeshghotikar.blogspot.com ko visit karen aur amuly mat se avgat karaave.

rajesh

श्रद्धा जैन said...

hindi main bolna aajkal heenta se dekha jane laga ho waha achanak hindi main bolo hindi main likho dekh kar achha lag raha hai
desh se bahar hindi ki ek alag pahchan hai
kaash ki hindi hind main bhi jagah paa sake samamaan paa sake
bhaut achha laga aapka lekh

Janatadarbar said...

http://www.facebook.com/l.php?u=http%3A%2F%2Fwww.facebook.com%2Fnote.php%3Fnote_id%3D168861814177%26id%3D1720198487%26ref%3Dmf&h=9e5b52ce5a7cd288a8372146a38fc437