Sunday, 14 September 2008

हिन्दी दिवस पर विशेष (अँग्रेज़ी स्कूलों में हिन्दी की पुस्तक के आंसू )


राष्ट्रभाषा का आशियाना , सदियों से भारत का मस्तक हूँ ………|
मैं हिन्दी की पुस्तक हूँ .....................................................| |

सैकड़ों सालों से नन्हे हाथों ने मुझे अपनाया ..........................|
माँ-बाप ,भाई-बहन और ऋषियों ने भी मुझे गले लगाया ……...| |
लेकिन आज प्यार की एक बूँद को तरसती हूँ ........................| |
मैं हिन्दी की पुस्तक हूँ ...................................................|

विदेशी आए शोतान लाये, घर छीना, गाँव छीना .....................|
और अब देश की मिट्टी की खुशबू को तरसती हूँ .................| |
मैं हिन्दी की पुस्तक हूँ ..................................................| |

अपने आज हुए पराये कुछ आज तो कुछ कल चले जायेंगे ....|
शायद अब लौट कर नहीं आयेंगे .....................................| |
मैं घर के कोने में पड़ी अपनों की एक झलक को तरसती हूँ...|
मैं हिन्दी की पुस्तक हूँ .................................................|

राष्ट्रभाषा का आशियाना , सदियों से भारत का मस्तक हूँ |
मैं हिन्दी की पुस्तक हूँ ...............................................| |

विजय-राज चौहान (गजब)

1 comment:

Anonymous said...

help me.