Saturday, 20 September 2008
“हमारा बच्चा “-रोती हुई रूबिया ने पालने की तरफ़ हाथ करते हुए कहा |
अचानक ही पारो हरिया के कंधे को हिलती है, “किस सोच में डूब गए हो , गाँव का स्टेशन आने वाला है”| हरिया को जैसे किसी ने कच्ची नींद से जगा दिया हो ,वह अपनी आंखें पोंछता है |
कुछ देर बाद गाड़ी स्टेशन पर रुकती है | नारायणपुर का स्टेशन आ गया था | हरिया गठरी को सिर पर उठता है और नीचे उतरता है | रेलगाड़ी चली जाती है | स्टेशन पर हरिया और पारो के सिवाय और कोई न था | हरिया आसमान की तरफ़ देखता है | चाँद अपनी चांदनी बिखेर रहा था | पूरब दिशा में भोर का तारा भी दिखाई दे रहा था | लगभग चार बजने को जा रहे थे , हरिया को कुछ ठण्ड महसूस होने लगी थी इसलिए वह गठरी से चद्दर निकलता है और उसे ओढ़कर गठरी सिर पर उठाकर चल देता है | पारो भी पीछे-पीछे चलती है वह एक टेढी मेढी पग डण्डी पर चलते है जो गाँव की तरफ़ जाती थी | रास्ते में उन्हें कही बाजरे के कटे खाली खेत दिखाई दे रहे थे तो कही ज्वार के खाली खेत | हरिया एक डंडा हाथ में लिए हुए था | थोड़ी देर में वह आपने आँगन में पहुँचता+ है | इस समय आँगन में लगा नीम का पेड़ काफी बड़ा हो गया था , एक कोने में पक्का कोठा था , जिसे उसके पिता ने बनाया था | उसके बाहर की तरफ़ एक छप्पर था जो अब टूटकर जमीन पर आ चूका था |
हरिया किवाड़ खोलता है , अन्दर एक झिंगला चारपाई पड़ी थी वह गठरी को उस पर रख देता है और गठरी से मोम बत्ती निकल कर माचिस जलता है , गठरी कुछ कपड़े निकल कर वह चारपाई पर बिछा देता है , पारो और छोटा बच्चा चारपाई पर लेट कर सो जाते है तो हरिया बाहर से कुछ छप्पर का टूटा फूस लाकर नीचे जमीन पर डालता है और उस पर एक चद्दर बछा कर वह भी सो जाता है | थोड़ी देर बाद ही बाहर बारिश आ गई थी |
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सुबह होती है तो सूरज काफी ऊपर चढ़ चूका था | रूबिया की आँखें खुलती है तो वह जँभाई लेते हुए बिस्तर से उठती है और अपने खुले बालों का जूड़ा बनाते हुए बच्चों के पलने के पास जाती है ,लेकिन पलने लेते एक बच्चे को देखकर उसका शरीर काँप जाता है | वह जोर से चीखती है और दौड़ कर सीढियो से नीचे उतरती है | इस समय उसका दिल जोर-जोर से धड़क रहा था , ठण्ड होने के बावजूद भी उसके शरीर से पसीना छूट रहा था | वह दौड़ कर हरिया और पारो के कमरे में जाती है लेकिन वहाँ दो नंगी चारपाई के अलावा कुछ नहीं था | रूबिया का मनो जी ही निकल गया हो , वह दौड़ कर फिर अपने कमरे में आती है और चढ्ढा साहब को जगती है | रूबिया चढ्ढा साहब से लिपट कर जोर-जोर से रोने लगती है | चढ्ढा साहब घबरा जाते है
-”क्या हुआ, क्यों रो रही हो”
-”हमारा बच्चा ” - रोती हुई रूबिया ने पलने की तरफ़ हाथ करते हुए कहा
-”क्या हुआ हमारे बच्चो को”
-”हमारे एक बच्चे को हरिया और पारो उठा ले गए है”
यह सुनते ही चढ्ढा साहब के शरीर से पसीना छूट जाता है | वह दौड़ कर पालने के पास जाते है लेकिन पालने में एक बच्चे को देखकर वो भी घबरा जाते है | उन्हें लगा मानों उनके पैरो तले की जमीन ही खिसक गई हो | वों दौड़ कर बाल कनी में आते है ओर हरिया ओर पारो को आवाज लगते है ,लेकिन रूबिया की तरह से वों भी निरुत्तर हो कर लोट जाते है |
रूबिया का रोते हुए बूरा हाल हुआ जा रहा था | चढ्ढा साहब रूबिया को अपने सीने से लगा लेते है उनकी आँखें भी भर आई थी |
-”रो मत रूबिया हम अपने बच्चे का पता जरूर लगा लेंगे, में अभी पुलिस को खबर करता हूँ “
चढ्ढा साहब फोन का रिसीवर उठाते हैं ओर पुलिस स्टेशन में सूचना देते है |
कुछ देर बाद पुलिस की गाड़ी आकर रुकती है ओर अन्दर से दो सिपाई ओर एक इंस्पेक्टर उतरते है वों लोग हरिया ओर पारो के कमरे का पूरा जायजा लेते है लेकिन कोई सबूत नहीं मिलता |
इंस्पेक्टर साहब -”चढ्ढा साहब वों दोनों आप लोगों के यह कितने दिनों से रह रहे थे “
“लगभग चौदह-पन्द्रह साल हो गए होंगे ,मेरे पिताजी ने ही उन्हें रखा था “- कहते हुए चढ्ढा साहब की आवाज भरी हो गई थी
-”आपके पास उनका कोई पता है वों लोग कहा के रहने वाले थे “?
-”जी नहीं “
-” क्या वों कभी अपने घर भी जाते थे “?
-”जी कभी नहीं गए “
-”इससे पहले कोई घटना उन्होंने की हो “
-”नहीं इंस्पेक्टर साहब , ऐसा कभी नहीं हुआ”
-”ठीक है हम शहर में अपने आदमी यो से उनका पता लगाने की कोशिश करते है जैसी भी सूचना मिलेंगी हम आप को इतला कर देंगे “
दस -बारह दिन बीत जाते है लेकिन बच्चे का कोई पता नहीं चलता |
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हरिया ( पारो से ) -”में सोचता हूँ , जमीन सुखी जा रही है क्यों न जोत कर गेहूँ की बुवाई कर दू “
-” हां कर दो खाने के लिए अनाज तो चाहिए ही “
-”लेकिन बैल,हल,बीज कहा से आएगा ” |
पारो -”दीनू भैया से ले लो जब आ जाएगा तो चूका देंगे “
हरिया -”ठीक है , देखता हूँ” | वह उठ कर दीनू के घर की तरफ चल देता है |
उपन्यास (भारत /India) से-(लेखक-विजय-राज चौहान)
पूरा उपन्याश पढने के लिए यहाँ चटका लगाये |
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