Monday 10 November, 2008

दीनू हुक़्क़े से चिलम उठा कर चिलम भरने चला जाता है |


पारो छप्पर में बैठी चूल्हे पर खाना बना रही थी |छोटा बालक भारत बहार नीम के पेड़ पर पड़े झूले में सो रहा था | हरिया और दीनू खेत में ऊख छिलने गए थे |फुलवा दीनू का खाना लेकर आती है |

फुलवा -”लाओ भाऊजी ,भारत के बापू का खाना दे दो खेत में दे आती हूँ |”

पारो -”ठहर जा फुलवा ,दो रोटी सेंक दू , ले जाना |”

पारो रोटी पका रही थी की अचानक ही फुलवा को उल्टिया सी आने लगती और चक्कर सा आ जाता है | पारो उसे दौड़ कर पकड़ती है और चारपाई पर लिटा देती है |

फुलवा (लेटे हुए )-”पता नहीं भाऊजी कई दिनों से ऐसा ही हो रहा है ,शरीर में भी कमजोरी सी महसूस हो रही है |”

पारो उसकी बीमारी को समझ चुकी थी ,वह मुस्कराते हुए कहती है -”अरे तुझे परेशान नहीं खुश होना चाहिए |”

फुलवा चौककर -”क्यों भाऊजी ?”

पारो -”अरे तुझे पता नहीं ,तुम माँ बनने वाली हो |”

फुलवा -” सच भाऊजी |”

पारो -”और नहीं तो किया झूठ थोड़ा ही बोल रही हूँ |”

फुलवा की खुशी का ठिकाना नहीं रहता ,वह चारपाई से उठना चाहती थी लेकिन पारो ने उसे मना कर दिया |

पारो -”तू आराम कर तब तक मैं खेत में खाना दे आती हूँ |”

पारो खाना लेकर खेत चली जाती है |फुलवा चारपाई पर पड़ी सोच में डूबी हुई थी | उसके मन में अनोखे ख्याल आ रहे थे ,उसकी खुसी का कोई ठिकाना नही रहता | उसे ऐसा लगा मनो संसार की सारी खुशिया उसकी गोद में आ गई हो , वह चारपाई से उठती है और झूले के पास जाकर नन्हे बालक भारत को अपनी बाँहो में उठा लेती है और वह उसका मुंह बार-बार चूमती है |

पारो टेढी -मेढी पगडंडी यो से होकर खेत चली जाती है वह खाना रख देती है | दीनू आता है |

दीनू -”क्यों भाऊजी , फुलवा खाना लेकर क्यों नही आई ? आपको अनायास ही परेशान किया |”

पारो -”कुछ नही थोड़े दिनों बाद ठीक हो जायेगी |”

हरिया भी आ जाता है | दोनों हाथ धोकर खाना खाने लगते है | दीनू का चित्त एक जगह न था | पारो ने उसे ठीक वजह न बताई थी |

दोनों खाना खा लेते है दीनू हुक़्क़े से चिलम उठा कर चिलम भरने चला जाता है | पारो बर्तन इकठ्ठा करती है और हरिया को पारो की तबीयत के बारे में बताती है और वह बर्तन सिर पर रखकर घर की तरफ चल देती है |
पूरा उपन्यास पढ़ने पके लिए यहाँ चटका लगाये

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