रूबिया-”क्योंजी कोई अच्छा सा नाम बताओ ना , जो हम अपने राजा बेटे का रख सके “|
चढ्ढा साहब -”हाँ नाम तो बहुत से है | परन्तु नाम ऐसा होना चाहिए जो सब से जुदा हो “|
(कुछ देर दोनों चुप रहते है)
रूबिया -”मे बताऊं “|
चढ्ढा साहब -”हाँ बताओं “|
रूबिया -”चंदन कैसा रहेगा “|
चढ्ढा साहब -”अच्छा नाम है |चंदन ही रख लेते है “|
कुछ देर बाद -
रूबिया -”क्यों जी सो गए हो किया “?
चढ्ढा साहब -”नहीं तो “|
“में कह रही थी कि हरिया और पारो तो चले गए है |सारा दिन कम करते-करते थक जाती हूँ और ब्यूटी-पार्लर कि कमाई भी नही होती, कम से कम एक आया तो जरूर ही घर मे चाहिए जो काम -धन्दा और हमारे बाद हमारे बच्चों कि देखभाल कर सके | ऑफिस के किसी विश्वास वाले व्यक्ति कि पत्नी या बहन हो तो वह अच्छी रहेगी |”
चढ्ढा साहब -”ठीक है कल देखूँगा |”
अगले दिन शाम को जब चढ्ढा साहब ऑफिस से लोटे तो उनके साथ एक तीस - बत्तीस साल कि एक सावली सी युवती थी | यह चढ्ढा साहब के ऑफिस में काम करने वाले नौकर रामू कि पत्नी थी | उसका पाँच महीने का एक बालक भी था | वह चढ्ढा साहब के साथ ऊपर आती है |चढ्ढा साहब रूबिया को आवाज लगते है | रूबिया किचन में थी वह आती है |
चढ्ढा साहब -”सुखिया, ये तुम्हारी मेम-साहब है |”
सुखिया -”नमस्ते मेमसाहब |”
रूबिया -”नमस्ते |”
चढ्ढा साहब -”रूबिया ये ऑफिस में काम करने वाले मेरे नौकर रामू कि पत्नी है | यही नजदीक ही इसका मकान है | यह हमारे चंदन को अच्छी तरह से रखेगी |”
रूबिया और सुखिया दोनों किचन में चली जाती है |रूबिया खाना बनाने लगती है |
रूबिया -”सुखिया “|
-”जी मेम साहब “|
-”सिंक में हाथ धो कर साहब को खाना परोस दो “|
सुखिया हाथ धो कर मेज़ पर खाना परोस देती है | रूबिया ,सुखिया के लिए भी खाना डाल देती है | सुखिया किचन के बहार जमीन पर बैठकर खाना खा रही थी तो चढ्ढा साहब और रूबिया मेज पर बैठकर खाना खा रहे थे |
कुछ देर बाद सुखिया आती है वह बर्तन उठा कर ले जाती है | वह उन्हें साफ़ करती है | बर्तन साफ़ करने के बाद , सुखिया -”अच्छा तो मेमसाहब में जाऊं |”
रूबिया -”यहाँ आओ सुखिया |” सुखिया आती है |
रूबिया -”देखो सुखिया ये हमारा बच्चा है |इसका नाम चंदन है |दिन में हमारे बाद तुम्हें इसकी और पूरे घर कि देखभाल करनी है |”
सुखिया बच्चे को देखते हुए -”बड़ा प्यारा बच्चा है ,मेमसाहब आप फ़िक्र न करे में अपने बच्चे से भी ज्यादा आपके बच्चे कि देखभाल करूंगी | अच्छा मेम-साहब नमस्ते |”
-”नमस्ते ” (सुखिया चली जाती है )
अगले दिन सुखिया सुबह को ही आती है | चढ्ढा साहब और रूबिया अपने-अपने काम पर चले जाते है | सुखिया बच्चे को पलने मे लिटा देती है और घर का काम करने लगती है | दोपहर को रूबिया का फोन आता है वह चंदन के बारे मे पूछ रही थी | कुछ देर बाद चंदन जाग जाता है | वह रोने लगता है | सुखिया उसे उठा लेती है और स्तन पान कराती है |
इसके बाद रूबिया रोज कुछ जल्दी आ जाती थी और थोड़ा बहुत समय चंदन को देती थी |इसी तरह समय गुजर रहा था |
पूरा उपन्यास पढ़ने पके लिए यहाँ चटका लगाये
Monday, 6 October 2008
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