Sunday, 23 November 2008

दीनू खाना खा कर जाकर चारपाई पर लेट जाता है कुछ देर बाद फुलवा भी चली आती है |


दीनू चिलम लेकर आ जाता है | वह उसे हुक़्क़े पर रख देता है तो दोनों हुक्का गुडगुडाने लगते है | दीनू कुछ परेशान था लेकिन हरिया खुश नगर आ रहा था |

हरिया -”दीनू तुम्हारे लिए एक खुशखबरी है |”

दीनू (चौककर ) -”क्या खुशखबरी है ?”

हरिया -”तुम बाप बनने वाले हो दीनू |”

दीनू -”सच कह रहे हो हरिया |”

हरिया -”सच ही तो कह रहा हूँ तब ही तो फुलवा खाना लेकर खेत नहीं आयी |”

अब दीनू की सारी परेशानी दूर हो चुकी थी, वह खुश नजर आ रहा था |

शाम को हरिया और दीनू दोनों घर आते है ,दोनों मिलकर चारा काटते है और बैलो को चारा डाल देते है | पारो और फुलवा दोनों खाना बना रही थी, दीनू खाना खा कर अपने घर जाकर चारपाई पर लेट जाता है कुछ देर बाद फुलवा भी चली आती है वह कुछ शर्मा रही थी | दीनू उसके पास आता है |

दीनू -”क्यों फुलवा, भौजी जो बात कह रही थी किया वह ठीक है |”

फुलवा का मुह शर्म के मारे लाल हो जाती है | वह सिर नीचा करके हाँ में हिला देती है | दीनू की खुशी का ठिकाना नहीं रहता , वह फुलवा को अपनी बांहों में उठा लेता है | दीनू खुश था ,फुलवा भी खुश थी वे दोनों एक ही चारपाई पर लेटे देर रात तक बाते करते रहते है और सो जाते है |

वैशाख का महीना आ गया था | गेहूँ पकने लगे थे | हरिया और दीनू भी खेत काटने के लिए तैयार हो जाते है | दीनू गॉंव के लुहार के पास हसिया ले जाता है और उसकी नई धार निकलवा लाता है |

सभी खेतो में कटाई लग चुकी थी | हरिया और दीनू भी अगले दिन सुबह को खेत पहुँचते है और खेत की कटाई शुरू कर देते है | पारो दोपहर का भोजन खेत ले जाती है और वह भी खेत की कटाई में जुट जाती है | फुलवा की तबीयत ठीक न होने के कारण वह घर पर ही आराम कर रही थी |छोटा बालक भारत भी फुलवा के पास ही था |

शाम तक आधा खेत कट गया तो तीनों घर को आते है और दूसरे दिन सुबह होते ही फिर खेत को जाते है और शाम तक सारा खेत काट डालते है | उसके बाद दीनू का खेत भी कट जाता है |

अगले दिन दीनू थ्रेशर वाले के पास जाता है और कटाई तय करके आता है |गांव भर में केवल प्रधान जी के पास ही थ्रेशर और ट्रैक्टर था जिससे वह मन चाहे दाम पर कटाई करता था |

चार दिन बाद थ्रेशर आता है |दीनू थ्रेशर में गेहू की पुलिया डालने लगता है और हरिया खेत में फैली पुलिया इकट्ठी करके दीनू के पास डालने लगता है |

दोपहर की लोहा पिघला देने वाली धूप थी | जिसमे हरिया अपना फटा अँगोछा सिर पर रखे काम कर रहा था | प्रधानजी का लड़का दूर आम की छाव में किसी नबाब की तरह से बैठा घडे से ठंडा पानी पी रहा था |

शाम तक सारा गेंहू कट जाता है तो दीनू बर्तन उठा कर अनाज को मापता है ,लगभग तीस मन गेहूँ हुये थे |

दीनू (प्रधान जी के लड़के से )-”तुम्हारा कितना हुआ भैया”

लड़का -”छ: मन हुआ |”

दीनू -”नही भैया यह तो पहली साल से दौगुना है |”

लड़का (झुँझलाते हुये )-”देख दीनू मैंने तुझे पहले ही कहा था ,तेल के दाम दो गुने हो चुके है |”

दीनू ने लड़के की कड़क आवाज सुनी तो वह चुपचाप अनाज माप देता है |लड़का अनाज ट्रैक्टर पर रखकर थ्रेशर लेकर अगले खेत चला जाता है |

कुछ देर बाद लुहार,बढाई,धोबी व नाई आते है | वे सभी आपना फसलाना लेने आते है | दीनू उन्हे भी अनाज माप देता हैं l

दीनू और हरिया के पास अब लगभग बीस मन गेंहू रहे थे फसल का तिहाई भाग खेत से ही जा चुका था | वे दोनों आनाज के बौरो को बैलगाडी में में लड़ते है और गाँव की तरफ चल देते है |

वे घर पंहुचते है तो काफी रात हो चुकी थी | दोनों मिलकर आनाज को अंदर रखते है और खाना खाकर सो जाते है | सुबह होती हे तो दीनू और हरिया बैलगाडी लेकर फ़िर खेत की तरफ चल देते है | आज उन्हें दिन भर में सारा भूसा घर में लाकर डालना था |
पूरा उपन्यास पढ़ने पके लिए यहाँ चटका लगाये

No comments: