Saturday, 29 November 2008
मोहिनी के पैर नशे में लड़खड़ा रहे थे |
******* रात के लगभग साढ़े ग्यारह बजने को जा रहे थे , मिस्टर चढ्ढा और रूबिया दोनों घर आ चुके थे और दोनों बैठे खाना खा रहे थे |सुखिया खाना परोस रही थी | अचानक टेलीफोन की घंटी बजती है तो रूबिया उठ कर फोन उठाती है |
-”हेलो”
-”हेलो”
-”रूबिया कैसी हो तुम ?” उधर से मिसिज टंडन बोल रही थी |
-”अच्छी हूँ “
-”ऐसा है कल शाम को घर जल्दी आ जन कल ऐश्वर्य का जन्म दिन है और हम पार्टी दे रहे है और हाँ भाई साहब को भी बता देना “|
-”ठीक है हम आ जायेंगे |”
-”और हाँ मोहिनी को भी बता देना |”
-”ठीक है में उसे भी फोन पर बता दूंगी |”
-”अच्छा तो गुड़ नाईट |”
-”गुड़ नाईट |”
रूबिया खाना खाकर अपने कमरे में चली जाती है तो सुखिया चंदन को भी उसके पास लिटा आती है | वह बर्तन साफ़ करती हे ओर चली जाती हे । दूसरे दिन शाम को नो बज चुके थे । पार्टी शुरू हो चुकी थी |मिसिज टंडन आने वालो का स्वागत कर रही थी |इस समय चार साल की एश्वेर्या छोटे बच्चो के साथ खेलने में मस्त थी | रूबिया और चढ्ढा साहब भी पार्टी में शामिल होने के लिए आते है |
कुछ देर बाद मोहिनी भी आती है | उसके साथ उसकी बेटी प्रिया भी थी |वह अब डेढ़ साल की हो गई थी और अब अपने पैरो पर चलने लगी थी |पार्टी चल रही थी नौकर खाना परोस रहे थे | होल में एक तरफ कुछ नवयुवको और नवयुवतियों का समूह था जो पाश्चात्य संगीत की धुनों पर थिरक रहा था | लगभग रात के बारह बजे पार्टी ख़त्म होती है | सभी लोग अपने घर जाने लगे थे |
मोहिनी के पैर नशे में लड़खड़ा रहे थे | उसका ड्राइवर उसे पकड़ कर गाड़ी में बैठता है और उसे लेकर घर चला जाता है | चढ्ढा साहब और रूबिया भी अपने घर की तरफ़ चलते है |इस समय उन दोनों के पैर भी इधर-उधर डोल रहे थे | सुखिया ने उन्हें देखा तो वह उन दोनों को पकड़ कर उनके कमरे में छोड़ आती है |
पूरा उपन्यास पढ़ने पके लिए यहाँ चटका लगाये
Sunday, 23 November 2008
दीनू खाना खा कर जाकर चारपाई पर लेट जाता है कुछ देर बाद फुलवा भी चली आती है |
दीनू चिलम लेकर आ जाता है | वह उसे हुक़्क़े पर रख देता है तो दोनों हुक्का गुडगुडाने लगते है | दीनू कुछ परेशान था लेकिन हरिया खुश नगर आ रहा था |
हरिया -”दीनू तुम्हारे लिए एक खुशखबरी है |”
दीनू (चौककर ) -”क्या खुशखबरी है ?”
हरिया -”तुम बाप बनने वाले हो दीनू |”
दीनू -”सच कह रहे हो हरिया |”
हरिया -”सच ही तो कह रहा हूँ तब ही तो फुलवा खाना लेकर खेत नहीं आयी |”
अब दीनू की सारी परेशानी दूर हो चुकी थी, वह खुश नजर आ रहा था |
शाम को हरिया और दीनू दोनों घर आते है ,दोनों मिलकर चारा काटते है और बैलो को चारा डाल देते है | पारो और फुलवा दोनों खाना बना रही थी, दीनू खाना खा कर अपने घर जाकर चारपाई पर लेट जाता है कुछ देर बाद फुलवा भी चली आती है वह कुछ शर्मा रही थी | दीनू उसके पास आता है |
दीनू -”क्यों फुलवा, भौजी जो बात कह रही थी किया वह ठीक है |”
फुलवा का मुह शर्म के मारे लाल हो जाती है | वह सिर नीचा करके हाँ में हिला देती है | दीनू की खुशी का ठिकाना नहीं रहता , वह फुलवा को अपनी बांहों में उठा लेता है | दीनू खुश था ,फुलवा भी खुश थी वे दोनों एक ही चारपाई पर लेटे देर रात तक बाते करते रहते है और सो जाते है |
वैशाख का महीना आ गया था | गेहूँ पकने लगे थे | हरिया और दीनू भी खेत काटने के लिए तैयार हो जाते है | दीनू गॉंव के लुहार के पास हसिया ले जाता है और उसकी नई धार निकलवा लाता है |
सभी खेतो में कटाई लग चुकी थी | हरिया और दीनू भी अगले दिन सुबह को खेत पहुँचते है और खेत की कटाई शुरू कर देते है | पारो दोपहर का भोजन खेत ले जाती है और वह भी खेत की कटाई में जुट जाती है | फुलवा की तबीयत ठीक न होने के कारण वह घर पर ही आराम कर रही थी |छोटा बालक भारत भी फुलवा के पास ही था |
शाम तक आधा खेत कट गया तो तीनों घर को आते है और दूसरे दिन सुबह होते ही फिर खेत को जाते है और शाम तक सारा खेत काट डालते है | उसके बाद दीनू का खेत भी कट जाता है |
अगले दिन दीनू थ्रेशर वाले के पास जाता है और कटाई तय करके आता है |गांव भर में केवल प्रधान जी के पास ही थ्रेशर और ट्रैक्टर था जिससे वह मन चाहे दाम पर कटाई करता था |
चार दिन बाद थ्रेशर आता है |दीनू थ्रेशर में गेहू की पुलिया डालने लगता है और हरिया खेत में फैली पुलिया इकट्ठी करके दीनू के पास डालने लगता है |
दोपहर की लोहा पिघला देने वाली धूप थी | जिसमे हरिया अपना फटा अँगोछा सिर पर रखे काम कर रहा था | प्रधानजी का लड़का दूर आम की छाव में किसी नबाब की तरह से बैठा घडे से ठंडा पानी पी रहा था |
शाम तक सारा गेंहू कट जाता है तो दीनू बर्तन उठा कर अनाज को मापता है ,लगभग तीस मन गेहूँ हुये थे |
दीनू (प्रधान जी के लड़के से )-”तुम्हारा कितना हुआ भैया”
लड़का -”छ: मन हुआ |”
दीनू -”नही भैया यह तो पहली साल से दौगुना है |”
लड़का (झुँझलाते हुये )-”देख दीनू मैंने तुझे पहले ही कहा था ,तेल के दाम दो गुने हो चुके है |”
दीनू ने लड़के की कड़क आवाज सुनी तो वह चुपचाप अनाज माप देता है |लड़का अनाज ट्रैक्टर पर रखकर थ्रेशर लेकर अगले खेत चला जाता है |
कुछ देर बाद लुहार,बढाई,धोबी व नाई आते है | वे सभी आपना फसलाना लेने आते है | दीनू उन्हे भी अनाज माप देता हैं l
दीनू और हरिया के पास अब लगभग बीस मन गेंहू रहे थे फसल का तिहाई भाग खेत से ही जा चुका था | वे दोनों आनाज के बौरो को बैलगाडी में में लड़ते है और गाँव की तरफ चल देते है |
वे घर पंहुचते है तो काफी रात हो चुकी थी | दोनों मिलकर आनाज को अंदर रखते है और खाना खाकर सो जाते है | सुबह होती हे तो दीनू और हरिया बैलगाडी लेकर फ़िर खेत की तरफ चल देते है | आज उन्हें दिन भर में सारा भूसा घर में लाकर डालना था |
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Monday, 10 November 2008
दीनू हुक़्क़े से चिलम उठा कर चिलम भरने चला जाता है |
पारो छप्पर में बैठी चूल्हे पर खाना बना रही थी |छोटा बालक भारत बहार नीम के पेड़ पर पड़े झूले में सो रहा था | हरिया और दीनू खेत में ऊख छिलने गए थे |फुलवा दीनू का खाना लेकर आती है |
फुलवा -”लाओ भाऊजी ,भारत के बापू का खाना दे दो खेत में दे आती हूँ |”
पारो -”ठहर जा फुलवा ,दो रोटी सेंक दू , ले जाना |”
पारो रोटी पका रही थी की अचानक ही फुलवा को उल्टिया सी आने लगती और चक्कर सा आ जाता है | पारो उसे दौड़ कर पकड़ती है और चारपाई पर लिटा देती है |
फुलवा (लेटे हुए )-”पता नहीं भाऊजी कई दिनों से ऐसा ही हो रहा है ,शरीर में भी कमजोरी सी महसूस हो रही है |”
पारो उसकी बीमारी को समझ चुकी थी ,वह मुस्कराते हुए कहती है -”अरे तुझे परेशान नहीं खुश होना चाहिए |”
फुलवा चौककर -”क्यों भाऊजी ?”
पारो -”अरे तुझे पता नहीं ,तुम माँ बनने वाली हो |”
फुलवा -” सच भाऊजी |”
पारो -”और नहीं तो किया झूठ थोड़ा ही बोल रही हूँ |”
फुलवा की खुशी का ठिकाना नहीं रहता ,वह चारपाई से उठना चाहती थी लेकिन पारो ने उसे मना कर दिया |
पारो -”तू आराम कर तब तक मैं खेत में खाना दे आती हूँ |”
पारो खाना लेकर खेत चली जाती है |फुलवा चारपाई पर पड़ी सोच में डूबी हुई थी | उसके मन में अनोखे ख्याल आ रहे थे ,उसकी खुसी का कोई ठिकाना नही रहता | उसे ऐसा लगा मनो संसार की सारी खुशिया उसकी गोद में आ गई हो , वह चारपाई से उठती है और झूले के पास जाकर नन्हे बालक भारत को अपनी बाँहो में उठा लेती है और वह उसका मुंह बार-बार चूमती है |
पारो टेढी -मेढी पगडंडी यो से होकर खेत चली जाती है वह खाना रख देती है | दीनू आता है |
दीनू -”क्यों भाऊजी , फुलवा खाना लेकर क्यों नही आई ? आपको अनायास ही परेशान किया |”
पारो -”कुछ नही थोड़े दिनों बाद ठीक हो जायेगी |”
हरिया भी आ जाता है | दोनों हाथ धोकर खाना खाने लगते है | दीनू का चित्त एक जगह न था | पारो ने उसे ठीक वजह न बताई थी |
दोनों खाना खा लेते है दीनू हुक़्क़े से चिलम उठा कर चिलम भरने चला जाता है | पारो बर्तन इकठ्ठा करती है और हरिया को पारो की तबीयत के बारे में बताती है और वह बर्तन सिर पर रखकर घर की तरफ चल देती है |
पूरा उपन्यास पढ़ने पके लिए यहाँ चटका लगाये
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