Wednesday, 14 January 2009

फुलवा दर्द के मारे जोर-जोर से चिल्ला रही थी,उसकी चीखे आसमान छू रही थी |


दीनू के आते ही हरिया ने पूछा -”क्यों दीनू क्या हुआ, डॉक्टर साहब मिले नहीं क्या ?”



दीनू -”क्या बताऊ हरिया, मेले थे लेकिन देखने से मना कर दिया, कह दिया और ले जाओ समय नहीं है |”



इतना कह कर दीनू ने बैलों की रस्सी या पकड़ी और वे शहर के अन्दर चल देते है | एक दो जगह रास्ता मालूम करके वे लोग अस्पताल पहुँच जाते है | दीनू और हरिया ने अस्पताल को देखा तो उनकी आंखें फटी रह गई | इतना बड़ा और भव्य अस्पताल उन्होंने पहले न देखा था | वह किसी राजा के महल की तरह चमक रहा था और भला चमके भी क्यों ना पूरे शहर के बड़े-बड़े लोग यहाँ इलाज कराने आते थे और डॉक्टर जैन अच्छी कीमत पर उनका इलाज करते थे |

दीनू गाड़ी से उतरता है और अस्पताल के अंदर घुसता है | इस समय वह चमकीले फ़र्श पर अपने गंदे पैर रखते हुए कुछ डर रहा था | दीनू अंदर गया तो -”आपको किससे मिलना है |” पीछे से आई आवाज सुन कर दीनू रुक जाता है | वह मुड़कर देखता है तो एक बीस-बाईस साल की लड़की सफेद कपड़े पहने खड़ी थे लगता था वह कोई नर्स होगी |



दीनू -”बेटी मुझे डॉक्टर साहब से मिलना है |”



नर्स -”वों सामने दरवाजा डॉक्टर साहब के कमरे का है |”



दीनू -” अच्छा बेटी |”



दीनू के पैर कमरे की तरफ़ बढ़ जाते है और वह दरवाजा खटखटाता है |”



-”कोन है अन्दर आ जाओ ” - अंदर से डॉक्टर साहब की आवाज आती है |



दीनू अंदर चला जता है | दीनू का मैला कचैला कुरता, फटी धोती और बिखरे बाल देखकर डॉक्टर साहब की त्योरी या चढ़ जाती है |



दीनू (हाथ जोड़ते हुए ) -”डॉक्टर साहब मेरी पत्नी को बचा लीजिये, वह बहुत बीमार है |”



डॉक्टर जैन -”क्या हुआ तुम्हारी पत्नी को ?”



दीनू -”जी बच्चा होने है, सुबह से तड़प रही है |”



-”ठीक है, तुम आपरेशन के लिए पाँच हजार रुपये जमा करा दो हम देखते है “- कहते हुए डॉक्टर जैन खड़े होते है |



दीनू ने पाँच हजार का नाम सुनते ही दीनू के पैरो के तले की जमीन खिसक जाती है |



-”डॉक्टर साहब मेरे पास पाँच हजार तो किया पूरे पाँच सो रुपये भी नहीं है” -दीनू हाथ जोड़ते हुए बोला |



-”नही है तो यहाँ क्यों आए हो, कोई धर्मशाला थोड़ा ही है, सरकारी अस्पताल में ले जाओ”- डॉक्टर जैन ने झुँझलाते हुए कहा |



-”नही साहब ऐसा ना कहो” -दीनू हाथ जोड़े गिड़गिड़ाते हुए डॉक्टर साहब के पैर छूने को हाथ बढ़ता है |



डॉक्टर जैन (दूर हटाते हुए) -”दूर रक्को अपने इन गंदे हाथों को मेरे पैरो से,पैसे का इंतजाम कर सको तो ठीक है वरना ले जाओ|”



दीनू के पैरो का जी निकल गया था, वह टूटे पैरो से बहार गाड़ी की तरफ़ चल देता है | आते ही हरिया ने पूछा -

“क्या हुआ, डॉक्टर साहब ने बुलाया है क्या?”

-”नहीं हरिया, डॉक्टर साहब पाँच हजार रुपये मांग रहे है कहा से लाऊ इतना रुपया ?” दीनू उदास स्वर से बोला | कुछ देर दोनों चुप रहते है |



हरिया (कुछ सोच कर) -”अरे हाँ पारो के कानो में सोने के कुंडल है भला वों किस दिन काम आयेंगे |”



दीनू -”अरे हरिया क्यों जीते जी जमीन में गाढ़ देना चाहते हो, भला में तेरी मेहरिया के गहने बेचूंगा |”



हरिया -”अरे भला ये गहने किस काम के, विपत्ति के समय ही तो काम आयेंगे |”



-”अरे सुनो तो सही |”



दीनू एक नहीं सुनता वह बैलगाड़ी पर बैठ जाता है | रात के लगभग नो बजे जा रहे थे | पूरा शहर बिजली की रोशनी से जगमगा रहा था | शहर की सड़कों से होते हुए दीनू,हरिया,और पारो फुलवा को लेकर फिर से सरकारी अस्पताल में आ जाते है | फुलवा दर्द के मारे जोर-जोर से चिल्ला रही थी,उसकी चीखे आसमान छू रही थी |

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